कुछ कही कुछ अनकही
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मरने से भी डरते है
और मुश्किल है जीना भी
रूठे जब सागर, रूठे
मौज़े और सफीना भी
कातिल से ही सीख गए
हम चाक ज़िगर सीना भी
बेबाक सही अदा तेरी
रख इक पर्दा झीना भी
कांच से भी कमतर फिर तो
नकली गर हो नगीना भी
खुदगर्ज़ी छोड़, सीख जरा
हंस कर मरना जीना भी
सरोज सिंह
मेलबर्न
ऑस्ट्रेलिया
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