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ऐ ,सियाह सफेद अब्र ……….

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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ले चल मुझको ऐ सफेद सियाह अब्र

ले चल मुझको ऐ सफेद सियाह अब्र
गम के लम्हों से दूर
सुकून के जहां में
ले चल उड़ा कर मुझको ……………..
ऐ नसीमें-;पुरनम
ऐ बादे- सबा
फ़िक्र की गलियों से दूर
मुस्कुराहटों के आसमान में
ले चल बहा कर मुझे ऐ मौजे-समंदर………………….
कोहसारों के पार्
मुहब्बतों की सरसब्ज वादियों में
ले चलो मुझको …………
ऐ बुझती हुई मेरी सांसों
बाँहों के उन दायरों में
रौशनी के उन घेरों में
जो मेरे जख्मो को भर दे
मेरे दर्द की जो कुछ दवा करदे
ले चल मुझको …………….

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