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शब्दों की नाव बनाकर ….

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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जीवन जिया मैंने शब्दों की नांव बना कर

जीवन जिया मैंने
शब्दों की नाव बना कर ..
लेकर सहारा रिश्तो की पतवार का
चलती रही लहरों पर जीवन की
थामे कलम हाथों में
उकेरा उन यादों को
मिली थी सौगातों में जो
कुछ अपनों से कुछ परायों से
उठाई कुछ कहानियाँ आसपास से
पिरोया दर्द/चुभन को कविता की लड़ियों में
बात मन की कुछ अपनी कुछ औरों की
करता गया कागज़ के हवाले
लिपटा कर कल्पना की रेशमी चादर में
कर लिया खुद को हल्का
बाँट कर दर्द के सेहराओं
अहसासों के समंदरों को
और बस यूँ ही
जीवन जिया मैंने
शब्दों की नाव बना कर

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