कुछ कही कुछ अनकही
- 193 Posts
- 159 Comments
रीता/ अनरीता
रेत का घरौंदा बनाते
कभी इकठ्ठा करते सीपियाँ ढेरों
रेत से मुठ्ठियां , कभी भरते
कभी रिताते हुए
हँसते खिलखिलाते
नन्हे बच्चे
ऐसे जैसे मेरा मन …
कभी रेत से भरी मुठ्ठी जैसा
तो कभी मुठ्ठी से फिसलते रेत सा
रीता
खाली
हर अहसास से
वैसे ही जैसे
अमावस की रात का बिन तारों का आसमान
जिसमें तारें होते तो हैं पर दिखते नहीं
वैसा ही रीतापन
जैसे
आसमान का सपाट चेहरा
जो भरा है यूँ तो तारों से
अनगिनत ख्यालों से लबालब
मेरा यह मन
कभी कभी जाने क्यों
हो जाता है
अमावस की रात सा
सपाट
सूना
खाली भी
भरा भी
समंदर किनारे रेत का घर बनाते
उस नन्हे बच्चे की मुठ्ठी सा
अभी रीता/अभी अनरीता सा
Read Comments