कुछ कही कुछ अनकही
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अजब सी कुछ …………………..
अजब सी कुछ होनी कुछ अनहोनियों का एक पुलिंदा है
धीरे धीरे गुजरते हुए यह दिनयह रात …………
आते है मोड कभी कभी ऐसे भी जब
कभी दुनिया तो कभी इंसान के चेहरे को बेपर्दा कर जाते है
धीरे धीरे गुजरते हुए यह दिन यह रात ………………
कितने और न जाने कैसे कैसे पलों से गुजरते हुए
कभी कभी अपना ही अनदेखा अनजानासा अक्स आईने में दिखा जाते है
धीरे धीरे ………
ले जाते है नसीब कभी खुशियों के विंध्याचल की ऊंचाइयों तक
तो कभी उदासी की अतल खामोश गहराइयों में ले जाकर छोड़ देते हैं
धीरे धीरे ………….
दुनियादारी के अँधेरे जंगलों से गुजरते हए सही गलत की भूल भूलभुलैया में
अपनी ही पहचान को खोकर जीना सीखा देते हैं
धीरे धीरे ….
सुख दुःख के ऊँची नीची पगडंडियों पर कभी उठे कभी गिरते
कभी गुलज़ार तो कभी कंटीली सी राहों पर चलना सीखा ही देते हैं
धीरे धीरे …………..
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