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कुछ पल जिए मैंने फ़क़त अपने लिए ……

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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कुछ पल जिए मैंने फकत अपने लिए

चुरा के वक्त से कुछ पलों को
जी के देखा मैंने फ़क़त अपने लिए …………….
भुला के माज़ी को ,
भुला के आने वाले वक्त को
भुला के अपनों को
भुला के बेगानों को
चुरा के वक्त से कुछ पलों को
जी के देखा मैंने फ़क़त अपने लिए ………………
उम्र बीती जिन रिश्तो को निभाने में
वो जाने कब के अजनबी हो गए
साथ दिया जिनका मुश्किल वक्तों में
वो भी अब बेगाने हुए
चुरा के वक्त से कुछ पलों को
जी के देखा मैंने फ़क़त अपने लिए………………
उन पलों में जब मैं सिर्फ मैं था
हर अपने बेगाने से दूर सिर्फ मैं
बिना किसी मुखौटे के
बिना किसी कृत्रिम मुस्कान को ओढ़े
बिना किसी रिश्ते के लबादे को ओढ़े
दूर फलक तक सिर्फ जमीं आसमां को तकते हए
पिया मैंने उन पलों को
चुरा के वक्त से कुछ पलों को
जी के देखा मैंने फ़क़त अपने लिए ………..
मिली इन पलों में वो गुजरी हुई यादें भी
जो खड़ी हैं आज भी सड़क के उसी मोड़ पे
जहाँ से हो गई थी जुदा मेरी राहें
और मैं अपनी मंजिल का पता वहीं भूल आया था
ढूँढा एक बार फिर मैंने उस मंजिल का पता उन पलों में
चुरा के वक्त से कुछ पलों को
जी के देखा मैंने फ़क़त अपने लिए …………….

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