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तूफान कई /मेरी दुनिया का /पता ले आये ……….

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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तूफान कई /मेरी दुनिया का /पता ले आये
कहाँ लौटते हैं?
वो पल
गुजर जाते हैं जो
कहाँ मिटते हैं?
निशां उन पलों के
दिल की जमीं से
बहा ले जाता है
साथ अपने
वक्त जिन पलों को……….

——————

था वो मौसम
यूँ तो बहारों का
बेरुखी ने तक़दीर की जिसे
पतझड़ में बदल दिया

———————
आई थी रुत बसंती भी यूँ तो
ओढ़े हुए चुनर सतरंगी
होती जब तक पहचान मेरी उससे
जाने कहाँ से
तूफ़ान कई,
मेरी दुनिया का पता ले आये …………

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