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न सही बुलंद आसमानों सा मगर मुकददर तो मेरा भी है

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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न सही बुलंद आसमानों सा
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अजब सी शोख़ियाँ हैं
यह हवाओं में आज क्यों /
फिर मेरे नाम ने शायद
उसके दिल के तारों को छेड़ा है /
जानता हूँ कि मैं ख़ाक हूँ
पर वज़ूद तो मेरा भी है /
न सही बुलंद आसमानों सा
मगर मुकददर तो मेरा भी है /
साया हूँ मैं तेरी तन्हाइयों का
साथ रहूंगा सदा /
खुश्बू बन तेरे आसपास
महकता रहूंगा सदा /
वो सुरमई रंग तेरे चेहरे का
मेरी यादों का आइना ही तो है /
अब्र बन कर बहे अश्क
जो तेरी पलकों से
दर्द वो मेरा ही तो है /
गज़ल वो जो तू गुनगुनाता रहा
जिंदगी के हर मोड़ पर /
छुपा हुआ उसके हर इक लफ्ज़ में
जो अफ़साना वो मेरा ही तो है

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