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मोड़ इक अनजाना सा ……

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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आया था एक मोड़ अंजाना सा जिंदगी की राहों में /
खबर हुई हमें तबतक चुपके से गुज़र गया /
खुशबू इक अनजानी सी दिल के एक कोने में /
अजनबी कोई चुपके से महका गया /
चला गया वो लेकर संग अपने जाने कितने अनकहे अफ़साने /
और इंतज़ार को मुक़ददर मेरा बना गया /
कैद थे जज्बात हमारे शर्मों-हया के पर्दों में /
खुली जुबां जब तब तक वो पल गुज़र गया /
फिर तो मुश्किल होती गई राहें हयात की /
न आया वो मोड़ फिर कभी जो अनजाने में बस गुज़र गया /

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