कुछ कही कुछ अनकही
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सहरा का नसीब
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आये बादल तो
प्यास को आस मिली /
कौन बदल पाया /
सेहरा का नसीब मगर /
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रास्तें के पत्थर भी /
दे देते हैं मंजिल का पता कभी कभी /
जरूरी नहीं कि हंसीं राहें ही /
ही ले जाएँ मंजिल तक /
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मुद्द्त से ताले थे /
हंसीं पर उसकी /
आज खुलके हंसा है वो /
रोने के बाद /
देख कर सामने/
मंज़र अपनी बर्बादी का /
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