Menu
blogid : 13246 postid : 712971

गैर हुई अपने ही गावं की पगडंडियां भी /यह चलन नया है

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
  • 193 Posts
  • 159 Comments

गैर हुई अपने ही गावं की पगडंडिया
——————————————-

काँटों ने दी है चुभन तो क्या नया है /
जख्म जब देने लगे फूल भी ,यह चलन नया है

वो जो गैर थे उनसे शिकवा करना क्या /
छुड़ाने लगें दामन जब अपने ,यह चलन नया है /

जलती धूप ने दी तपिश अगर तो क्या नया है/
बरसती नहीं अब सावन की बदलियाँ भी ,यह चलन नया है /

अजनबी थी शहरों को जाने वाली सड़कें तो क्या नया है /
गैर हुई अब अपने ही गावं की पगडंडियां भी यह चलन नया है /

पत्थर हैं का तो दस्तूर था चोट पहुँचाना इसमें क्या नयाहै /
पत्थर बन गई अब नज़ाकतें भी वज़ूद अपना बचाने को , यह चलन नया /

अजनबी था ,था पराया भी यह शहर क्या इसमें क्या नया है /
पराई हो गई अब तो हवाएं भी यहाँ की यह चलन नया है /

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply