कुछ कही कुछ अनकही
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किश्तों में जी कर देख ली अब तक जिंदगी बहुत
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लड़ना है गर अंधेरों से तो बैठे रहो न यूँ /
उठो, चलो नये सवेरों की खोज में निकलते हैं /
बदलना है गर जमाने को, तो क्यूँ समझाएं औरों को /
चलो ,आज हम अपनी ही सोच बदल कर देखते हैं /
बहुत कर लिया भरोसा, हाथों की लकीरों पर /
चलो अब खुद ही नसीब अपना लिख कर देखते हैं /
छोड़ गये साथी पुराने बीच राहों में तो क्या /
चलो, आज कुछ नयी राहें ,नये हमसफ़र चुनते हैं /
बहुत कर चुके हाथ अपने लहूलुहान ,काँटों के संग /
चलो ,आज कुछ फूलों की तलाश में निकलते हैं /
किश्तों में जी कर देख ली अब तक जिंदगी बहुत /
चलो , आज अपने लिए एक मुकम्मल जहां बुनते हैं /
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