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है भीड़ बहुत इस शहर की हर गली में यूँ तो …….

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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है भीड़ बहुत इस शहर की हर गली में
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हैं भीड़ बहुत इस शहर की हर गली में यूँ तो /
इंसान एक भी नज़र फिर आता नहीं क्यूँ ?

रोशन है हर गली हर कूचा इस शहर का यूँ तो /
अजब सा एक अंधेरा हर दिल में छाया है क्यूँ ?

पहने है हर कोई रंगीन लिबास यूँ तो /
छाये हैं फिर चेहरों पे उदासियों के गहरे साये क्यूँ ?

छू लिया इंसान ने आसमां की हर बुलंदी को यूँ तो /
दिलों में इक दूजे के इतने फासले फिर आ गये क्यूँ /

कहने को है शांत बहुत, माहौल इस शहर का यूँ तो /
हर दिन ही आने को रहता तैयार इक नया तूफान क्यूँ /

ऊँची दीवारें, मजबूत दरवाजें हैं सारे हिफाजत के सामान यूँ तो /
आये दिन कई मासूमों का वज़ूद होता यहाँ फिर तार तार क्यूँ /

लड़ना होगा उनसे ही जो है चमन के पहरेदार यूँ तो /
कर दिया उन्होंने ही , तूफानों के हवाले चमन फिर अपना क्यूँ /

हक़ है हर रंग ,हर मज़हब, के इन्सां को जीने का यूँ तो /
भूल रहा फिर भी इंसानियत रोज के झगड़ों में आज का इंसान क्यूँ /

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