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ऋषि बोध उत्सव ( शिवरात्रि ) पर स्वामी दयानंद के विचार और हमारा आज का भारत ….

कुछ कही कुछ अनकही
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2014-01-16

भूली हुई वेद विद्या का बोध कराया और सत्य का सही अर्थ बता कर मिटाई अज्ञानता इस महान योगी ने
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आज हम भारतीय अपने आपको चारों और एक विचित्र अराजकता और अशांति से घिरा हुआ महसूस करने के साथ साथ कुछ मजबूर भी पा रहे हैं । वर्त्तमान स्थितियों के प्रति रोष और क्रोध तो है पर विकल्प भी नहीं मिल रहा है ।एक अजीब सी घुटन में जी रहा है हमारा आज का यह देश ।सब कुछ होते हुए भी कुछ मतलबी स्वार्थी तत्वों के हाथों मानों हमने अपने आपको गिरवी रख दिया हो।गलत निर्णय होते हैं । अर्थहीन नीतियां बनती है ।पर कोई आवाज़ नहीं उठती ।और अगर उठती भी है तो उसे साथ नहीं मिलता । कोई आदर्श नही दिखता ।कोई देश के बारे में बात नहीँ करता ।एक दूसरे की गलतियां गिनाने में व्यस्त आज की राजनैतिक पार्टियां हमें क्या भविष्य दे सकती हैं भला ?
जहाँ देश के अन्दर के हालात इतने निराशाजनक हैँ वहीँ दूसरी अोर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनगिनत भारतीय हर क्षेत्र में हरदिन कामयाबी की नई मिसालें स्थापित कर रहें हैं ।विजय का परचम लहरा कर हमारा सर ऊँचा कर रहें हैं ।इस विरोधभास की स्थति से आम आदमी हैरान है और बहुत परेशान है हमारा वो युवा वर्ग जिसके आँखों में हजारों सपने हैं और जो आसमान छूने को बेताब है ।देश में संसाधनों की कोई कमी नहीं पर रोज ही कोई किसी भ्रष्टाचार का पर्दाफाश होता है और अदालतें हर बढ़ते हुए कदम पर रोक लगा देती है ।सड़कें बनते बनते रुक जाती है और हादसों का बड़ा कारण बन जाती हैं किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता ।देश के हर हिस्से में रोज बस धरने ,हड़ताल , राष्ट्रीय सम्पति की तोड़ फोड़ होती है पर किसी को दुःख नहीं होता ।ऊपर बैठे लोग देश की बागडोर अपने हाथ में लेने के लिए नित नये हथकंडे अपना रहे हैं राजनीति अपने आजतक सबसे नीचे स्तर पर आ कर अब और कहाँ जायेगी इस बात का डर अब एक ऐसे चौराहे पर खड़े इस देश की आम जनता को सताने लगा है जहां से कोई नई राह का कोई निशान भी नजर ही नहीं आ रहा है ।
आज हम एक ऐसी परिस्थिति में हैँ जब बस किसी परम शक्ति का सहारा लेने अौर उस शक्ति की शरण मेँ सर झुकाने की नौबत सी आ गई है। ऐसे ही किसी पल में धर्म हमारा सहारा बनता है और तभी हम परमशक्ति के विभिन्न अवतारों ,समाजसुधारकों आदि पर लिखे ग्रंथों को पढ़ते हैं ।।
और पाते हैं कि सभी महापुरुषों ने मानवीय कष्टों को भोगा है बिलकुल वैसे ही जैसे कि सामान्य मनुष्य भोगता है ,और यही हमारे लिए शिक्षा का आधार बनता है मनुष्य के निकट आ कर उसके भीतर की मनुष्यता भी समझाते हैं ऐसे ही ग्रन्थ और जीवनियां ।
आज हम जिस सानकात से गुजर रहें हैँ ऐसे में शायद किसी महान पुरुष या परमात्मा के दूत की जीवन गाथा पढ़ने से कोई सबक ,कोई सहारा और किसी नई सोच का सिर मिल जाये या …….
ऐसे में इतिहास के पुराने पन्नों में से शायद हमें कोई प्रेरणा का स्त्रोत मिल जाये …
यही सोच कर ……….
बहुत पुराने वक्तों में लिखे इस लेख से कल कहीं मुलाक़ात हो गई और सोचा कि चलो इस मंच पर इसे साझा कर लिया जाये …… कुछ देर के लिए ही सही ,यह पढ़कर मन को कुछ शांति मिलेगी ही कि हमारा देश हमेशा ऐसी दिशाहीन दशा में नहीं रहा है और कुछ ऐसी विभूतियों ने भी यहाँ जन्म लिया है जिनके लिए समाज और देश की भलाई के लिए ही सर्वोपरि थे।

स्वामी दयानद एक ऐसे महान व्यक्ति थे ,जिनका सम्पूर्ण व्यक्तित्व एक संस्था के समान था ।वे एक ऐसे युग प्रवर्त्तक ,युग दृष्टा और समाज सुधारक थे जिनका स्थान भारत के इतिहास में अद्वितीय है ।उन्होंने एक तरह से भारतीय संस्कृति का का पुनरुत्थान किया ,जिस समय उन्होंने भारतीय समाज में वैदिक शिक्षा और धर्म का बीड़ा उठाया वह एक ऐसा समय था जबकि भारतीय जनमानस दिशा हीनता की ओर अग्रसर हो रहा था ।भारत अपनी प्राचीन संस्कृति की गौरवमय परम्परा को भूलकर पश्चिम का अंधानुकरण कर रहा था ।उनके पवित्र विचारों औए प्रवचनों की दिव्य रोशनी ने सभी भारतीयोँ की ऑंखें खोल दी ।उन्होंने हमें अन्धविश्वास ,मूर्ति पूजा ,अशिक्षा ,बालविवाह , सतीप्रथा ,जन्म कुंडली के चककर और अछूत समस्या की अंधेरी दुनिया से बाहर निकाल कर सच्चाई और तथ्यों की रोशनी में उन्नत पथ पर ऐसा आगे बढ़ाया कि सम्पूर्ण समाज में एक नई जाग्रति आ गई ।

आर्य समाज की स्थापना करके स्वामी दयानंद ने हम भारतीयों को सदा के लिए अपना ऋणी बना दिया ।।।।
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योगी और समाज सुधारक उनसे पहले भी और उनके बाद में भी बहुत हुए हैं पर वे अपने ढंग के अनोखे योगी थे ।। अन्य योगियों ने केवल अपनी उन्नति की और अपनी मुक्ति का मार्ग खोज और ईश्वर दर्शन के पथ पर भी स्वयं ही चले परन्तु भारत के “मार्टिन लूथर किंग “” कहलाने वाले स्वामी दयानंद ने अपना सम्पूर्ण जीवन जनकल्याण पर न्योछावर कर दिया ।

यही उच्च आत्माओं का उद्देश्य होता है ।वे संसार की उन्नति के लिए आते हैं और इस दुखमय जगत को दुखों से मुक्त करते हैं।
स्वामी दयानंद को चौदह वर्ष की आयु में जो आत्मबोध हुआ था वही हम शिवरात्रि के दिन “” ऋषि बोध उत्सव “” के रूप में मनाते हैं ।इसी आत्मबोध और आत्मज्ञान को इस महान विभूति ने हिन्दू जाति के उत्थान का आधार बनाया ।
ईश्वर निराकार और एवं सर्वशक्तिमान है ।वह कभी अवतार नहीं लेता और मर्तिपूजा केवल समय का दुरूपयोग है ,उत्तर भारत के लोगों ने इस बात को अच्छी तरह से समझा और इसी कारण स्वामी जी द्वारा चलाई गई वैदिक शिक्षा नीति ,गायत्री मन्त्र हवन का यहाँ अब पालन किया जाता है ।
स्वामी दयानंद के उपदेशों को यहाँ के लोगों ने कितनी श्रद्धा के साथ अपनाया इस बात का सबूत यह है कि यहाँ सबसे अधिक डी-ए -वी शिक्षण संस्थान हैं ।इसी तथ्य से यह सिद्ध होता है कि अपनी संस्कृति और इतिहास का सम्मान करना हमने स्वामी जी से ही सीखा ।
स्वामी जी ने कई बार ईसाईयों और मुस्लिम धर्म गुरुओं के साथ खुले आम वाद विवाद किया और और लाखों लोगों को अपना अनुयायी बना लिया।उन्होंने कभी किसी धर्म की निंदा नहीं की .परन्तु वे इस बात पर जोर देते रहे कि
” नहीं सत्यात्परो धर्म ”
अर्थात समय से अधिक कोई धर्म नहीं ।
गुरु विरजानंद भी ऐसा शिष्य पाकर धन्य हो गये थे और निश्चिन्त होकर यह दक्षिणा मांग सके थे —-“हे पुत्र व्रत करो कि वैदिक धर्म का प्रचार और वेद विरुद्ध मतों का खंडन करोगे “।
सरल हृदय से गुरु की पसंद लौंग गुरु दक्षिणा के रूप में लाने वाले इस अनोखे शिष्य ने गुरु द्वारा मांगी गई दक्षिणा कितने सच्चे हृदय से चुकाई इस का प्रमाण हम सब के समक्ष है ।
यद्यपि स्वामी दयानंद ने १८७५ में ” आर्यसमाज ” का संगठन किया परन्तु वे व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मूल्य भी बहुत अच्छी तरह समझते थे ।
वस्तुतः आज के भारत में व्याप्त अशांति कारण यही है कि हम कितने स्वतंत्र अथवा परतंत्र हैं यह स्पष्ट रूप से समझ ही नहीं पाते ।यदि आर्यसमाज के नियमों को ध्यान से पढ़े तो यह सब शंकाए दूर हो जाएँगी और हमारा सही मार्ग दर्शन हो सकेगा ।
आर्यसमाज का दसवां नियम कहता है कि “सब मनुष्यों को सामाजिक सर्वहितकारी नियम पालन करने में परतंत्र रहना चाहिए और प्रत्येक हितकारी नियम में सब स्वतंत्र रहें “।
स्वार्थ और असत्य ही हमारी अवनति का कारण है ।स्वामी दयानंद कितनी सुंदर और सटीक बातें बताकर गये हैं ।देखिये उनके नवें नियम में ,,,

“प्रत्येक को अपनी ही उन्नति में संतुष्ट नहीं रहना चाहिए बल्कि सबकी उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिए ”
यदि हम इस नियम का पालन कर सकेँ तो हमारा देश भी स्वर्ग बन जाये पर अाज जो हम देख रहेँ हैँ वो तो चर्चा के काबिल भी नहीँ ।

महात्मा बुद्ध और शंकराचार्य जैसे महापुरुषों ने मानव जाति को बहुत कुछ दिया है ।परन्तु जहां महात्मा बुद्ध ने लोगोँ के हृदय को तथा शंकराचार्य ने मस्तिष्क को प्रभावित किया वहाँ स्वामी दयानंद ने दोनों ही पक्षों को बराबर प्रभावित किया।न तो उन्होंने कोई नया मत चलाया और न ही अपने नाम का गुण गान करवाया ।
स्वार्थहीन मानव सेवा का व्रत उन्होने जीवन भर निभाया ।वेदों की शिक्षा पर स्वामी दयानंद बहुत अधिक जोर देते थे ।क्योंकि वेद ईश्वर कृत है और संसार के हर ज्ञान का सार इनमें निहित है ।स्वामी दयानंद ने सदैव संस्कृत भाषा को मातृभाषा का दर्जा दिया ।
उन्होंने ” सत्यार्थ प्रकाश ”जैसी पुस्तक लिखकर हमारा सच्चा मार्गदर्शन किया ।सारी सामाजिक बुराइयों को जड़ से उखाड़ कर जो उपकार किया वह महान है ।
जो सेवा भाव ,भ्रातृ प्रेम और शिक्षा का प्रसार करने का उच्च भाव ईसाई धर्म में है आर्य समाज में भी उसका रूप झलकता है ।देश के कोने कोने में और विदेशों में भी फैले हुए” दयानंद एंग्लो वैदिक ” शिक्षण संस्थान इस तथ्य के जीते जागते प्रमाण हैं ।

आज शिव रात्रि/ऋषिबोध दिवस पर उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम सब अपने अपने स्तर पर उनके द्वारा दिखाए रास्ते पर चलने का प्रयास करें और आर्यसमाज की नींव मजबूत करने के साथ साथ इसके प्रचार और प्रसार में भी अपना अपना यथोचित योगदान दें ।
अाज समाज मेँ जो स्वार्थी तत्व केवल अपना हित करने मेँ लगे हुये हैँ हमेँ उन के विरुद्ध मिलकर आवाज़ उठाने का समय आ गया है ।देश मेँ बदलाव लाने का समय हमारे सामने है।।
अपने अपने स्तर पर देश के हालात सुधारने के लिये अाहुति देने का समय हमारे सामने है ,फैसला तो हमेँ ही करना है।
तो फिर देर किस बात की,,,,,
चलिये कदम कदम से मिलाये अौर एक नयी सुबह की शुरुअात करेँ ,,,,,,,,,,,,,,,

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