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कविता का जन्म (contest )

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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कविता का जन्म

बहुत लम्बे सफर से गुजरती है एक कविता/
उसके जन्म से पहले कोई कवि कहीं /
अपने मन के किसी कोने में न जाने कब से छुपा रखी /
अपनी कोमल भावनाओं को /
अपनी प्रेरणा की खुशबुओं में मिला कर /
कल्पना के रंगों में रंग कर /
कुछ नये नाम नये रूप दे कर /
रहस्य के घूंघट में छिपा कर /
एक कोरे कागज पर उतारता है /
या फिर /
कभी कोई ख्याल यूँ ही अपने आप कविता बनकर /
बिजली की तरह मन में कौंध जाता है /
और कभी तो उनीदीं सी रातों में /
नींद से जगा कर /
कुछ अनजाने , अनचीन्हे से शब्दों के जाल में /
कवि को उलझा कर छोड़ जाते हैं /
उन भूले बिसरे ख्यालों ,जाने अनजाने से शब्दों से/
सुबह की किरणों के साथ /
जब एक नई कविता का जन्म होता है /
तब /
कवि भी हैरान रह जाता है /
और कभी कभी तो यूँ भी होता है कि/
राहों में चलते चलते /
कोई चंचल सा /नटखट सा /
ख्याल सामने आकर खड़ा हो जाता है /
और मुस्कुरा कर / एक मीठी सी चुनौती के साथ /
कहता है /
बुनो न कविता मुझ पर /
तुम तो शब्दों के जादूगर हो /
जीवन दो मुझे /रूप दो मुझे /
पता है मुझे /
सृजन की पीड़ा क्या होती है /
पर जब तुम्हारी डायरी के कोरे पन्नों पर /
तुम्हारी नई रचना बन कर मेरा जन्म होगा /
तब तुम /
मुझे देखते ही अपनी सारी पीड़ा भूलकर /
अपनी नई किताब का एक पन्ना मेरे नाम कर दोगे/
और तब तुम्हारी रचना बन कर /
जीवन भर कभी किसी सम्मेलन में /
या शायद कभी किसी के होंठों पर मचलती इठलाती /
किसी प्रेमी का सन्देश बन /उसकी प्रेमिका के मन का गीत बन जाऊं
और ऐसे ही /
कभी /
शायद /
मैं /
तुम्हारी एक यादगार रचना बन /
अमर हो जाऊं /

रचयिता —–सरोज सिंह

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