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क्यूँ न हम अपने बगीचे में मटर पनीर का पेड़ उगालें …..संस्मरण (contest )

कुछ कही कुछ अनकही
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मटर पनीर का पेड़ (संस्मरण )
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बच्चों की दुनिया भी कितनी प्यारी होती है। उनकी बातें ,उनकी काल्पनिक दुनिया में एक अनोखी सरलता और वो मिठास होती है जो गम्भीर से गम्भीर स्वभाव के व्यक्ति को भी एकबार तो मुस्कुराने पर विवश कर ही देती है। इन नन्हे मुन्नों को जो अच्छा लगता है वह वास्तव में कितना व्यवहारिक है इससे उन्हें कोई सरोकार नही होता। वे तो अपनी परी कथाओं ,लोक कथाओं में या फिर कॉमिक्स के सुपरमैन ,स्पाइडर मैन या फिर चाचा चौधरी के साबू जैसे लोकप्रिय और साहसी चरित्रों को अपना आदर्श मानते हुए खुश रहते हैं। जब पढाई की बारी आती है तो इन छोटे छोटे बच्चों पर दया भी बहुत आती है। बेचारों को अपने नाजुक , छोटे छोटे कंधों पर भारी बस्तों का बोझ उठाना ही पड़ता है।
खैर मेरे अपने दो नन्हे मुन्ने हैं एक बिटिया जो दस वर्ष की है और एक बेटा जो पांच साल का है। वंदना और आदित्य उनके नाम हैं। आदित्य जी छोटू के नाम से ज्यादा जाने जाते हैं। दोनों की बातें और लड़ाई झगड़े कभी मेरा मनोरंजन करते हैं तो कभी मेरा सरदर्द भी बन जाते है जब मुझे एक निर्णायक की कठिन भूमिका निभानी पड़ती है। आज इस मंच पर संस्मरण के रूप में इन दोनों की कुछ बातें साझा करने का लोभ सवंरण नहीं कर पा रही हूँ।
अब छोटू जी का सबसे बड़ा दुःख तो यह वह अपनी दीदी से छोटे क्यूँ हैं ?इसकी शिकायत वो कई बार हमसे भी कर चुके हैं यह कह कर कि उन्हें दीदी से पहले पैदा होने के हक से वंचित कर के हमने उनके साथ बहुत अन्याय किया है और इस शिकायत का ज़ाहिर है कोई समाधान तो हो नहीं सकता था इसलिए उनके दिमाग में एक और नायाब ख्याल आया। वास्तव में हर साल जन्म दिन पर उम्र का एक साल जुड़ जाता है यह अब तक उन्हें पता चल चुका था सो उनके अनुसार क्योंकि दीदी जो छोटू से पांच साल बड़ी हैं यदि वो पांच साल तक अपना जन्मदिन न मनाये तो दोनों की उम्र बराबर हो जायेगी फिर कोई छोटा बड़ा नहीं रहेगा। कितना सरल उपाय था समस्या को सुलझाने का, उस छोटे से सरल हृदय शिशु का ,है ना ?
और इधर उनकी बड़ी बहन का यह हाल है कि वो अपने छोटे भाई पर इतना रौब जमाती हैं कि क्या कोई फौजी पलटन का कमांडर भी जमाता होगा ? इसका एक कारण यह भी है कि पापा की कुछ ज्यादा ही लाड़ली बिटिया है और इसलिए थोड़ी निडर हो गई है .खैर ,क्योंकि वंदना जी को बाल साहित्य पढ़ने का बहुत चाव है तो उसके पास हर दम कुछ नये अफलातूनी तरीके तैयार ही रहते है जिनसे वो अपने भोले , सरल हृदय भाई को जम कर परेशान सकें और घर में अपना एकछत्र आधिपत्य बनाये रख सके ।अब सुनिये उसका यह नया नया अत्याचार अपने जूनियर पर ।हुआ यूँ कि वंदना ने लॉरेल हार्डी के एक कॉमिक में एक वैजानिक द्वारा एक ऐसे रसायन की खोज पर आधारित कहानी पढ़ी जो इस रसायन से किसी भी आदमी को छोटा यानी मिनी साइज़ का बना सकता था ।फिर क्या था पहले तो यह कहानी छोटू जी को सुनाई गई और यह भी साथ में जोड़ दिया कि हमारे स्कूल की साइंस लैब में भी यह रसायन बन सकता है ,और अगर “आज के बाद तुम मेरी हर बात मानना नहीं तो मैं लैब से यह रसायन ला कर तुझे बिलकुल मिनी मनुष्य बना दूंगी और तुम कभी बड़े नहीं होगे इतने ही रह जाआगे जितने अभी हो “इसके साथ ही यह बात घर में किसी और को न बताने की सख्त हिदायत भी दे दी गई ।
हर दम जल्दी से बड़ा होने की तमन्ना दिल में पालने वाले , बेचारे छोटू जी इतना डर गये कि सब लड़ाई झगड़ा छोड़ कर बड़ी बहन के गुलाम बन कर उसक हर बात मानने लगे ।क्योंकि मुझे घर में इतनी शांति देखने की आदत नहीं थी इस लिए थोड़ा अजीब लगा ।जब तक दो चार बार हाथापाई ,चिल-पों न हो तो लगता है दिन ऐसे कैसे गुजर गया ?सो बच्चों से मज़ाक मज़ाक में पूछा कि सब ठीक तो है ?बड़ी दोस्ती हो गई दोनों में ।पर दीदी की आँखों में छुपी शरारत भरी चमक और छोटू जी का थोड़ा उदास और सहमा हुआ चेहरा कुछ अलग ही कहानी बयां कर रहे थे और ऐसे अनकही चुगलियां पकड़ने में हर माँ को महारत हासिल होती है या यूँ कह लीजिये कि यह हमें खुदा की तरफ से दी गई नायाब सी एक देन है ।सो एक छोटी मोटी घरेलू अदालत लगी और सारे तथ्य सामने आ गये ।घर के अन्य सदस्यों जैसे सहायक (अर्दली) और काम वाली बाई सफाई वाले भैया की गवाही ने सारी पोल खोल दी ।वंदना ने अपना गुनाह कबूल कर लिया ।छोटू जी को उस भय से मुक्ति मिल गई .।हँसते खेलते अदालत बर्खास्त हुई और फिर सब कुछ जैसा था वैसा ही हो गया ..मैंने भी चैन की सांस ली !!
चैन वैन तो खैर कहने की बातें हैं एक झगड़ा सुलझेगा तो कुछ और शुरू हो जायेगा ।मसलन choclate,आइसक्रीम,,पेन पेन्सिल ,कॉपी , किताब आदि पर भी तो हर दिन छोटी मोटी जंग चलती ही रहती है।खाने पीने का मामला तो वैसे ही बहुत उलझन भरा होता है । डाइनिंग टेबल पर तो हर रोज एकाध मिनी बम का फटना लाज़मी है ही ।
अब यह वाकया सुनिये ज़रा……
मटर पनीर चूँकि हमारे छोटू जी पसंदीदा सब्जी है इसलिए हर दूसरे दिन बनती ही है ।उधर वंदना जी को वैसे तो सब्जी रोटी ,परांठा आदि बहुत अधिक पसंद नहीं हैं पर जो चीज भाई को ज्यादा अच्छी लगती है उस पर उनका हक़ जताना तो लाज़मी हो ही जाता है ।हाँ तो उस दिन भी खाने की मेज़ पर मटर पनीर में से पनीर कौन ज्यादा खा रहा है इस पर बहस हो गई ।मामला गर्म होते देख आखिर हस्तक्षेप करना ही पड़ा ।पर यह क्या ?एक को समझाया तो दूसरा नाराज !!!!अजीब परेशानी थी । दोनों को समझाया कि ठीक है आज से हर दिन मटर पनीर ही बनेगा ।अब झगड़ा बंद करो और चुपचाप खाना ख़तम करो ।
और तभी हमारे छोटू जी की तरफ से इस समस्या को हमेशा के लिए सुलझाकर स्थायी शांति स्थापित हो जाये ऐसा एक बिलकुल नया और मौलिक विचार रखा गया ,जो यह था कि….
“”क्यूँ न हम अपने किचन गार्डन में मटर पनीर का एक पेड़ ही उगा लें ?रोज जाएँ और जितना मर्ज़ी हो उतना तोड़ कर ले आयें ..कितना मज़ा आयेगा ..है न ममा ?””
उस भोले भाले मन के इस अटपटे आइडिया ने और कुछ किया हो या नहीं पर सब को दिल खोलकर हँसने के लिए मजबूर तो कर ही दिया ।
और इस तरह उस दिन खाने की मेज़ पर हुआ यह किस्सा और वो खिलखिलाहट सदा के लिए एक प्यारा सा संस्मरण बन कर सब के दिलों में समा गया।

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