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जाने क्यूँ हरेक दरो-दीवार से बतियाने का मन है आज ..
छुपा कर रखे थे राज जो उन्हें बताने का मन है आज ..
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दूरियां जिनसे बना रखी थी अब तक, हमराज़ उन्हें बनाने का मन है आज ..
जिए हैं अब तक जो उन सारे पलों को कविता बनाने का मन है आज ..
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रोशन ही थे घर आँगन तो ,दिल के अंधेरों को रोशनी में बदलने का मन है आज ..
करते रहें वही जमाने को था जो पसंद , अपने मन की कुछ करने का मन है आज ..
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बहुत कर लिया संभल संभल कर लफ़्ज़ों का कारोबार , मन में है जो वो कहने का मन है आज ..
सहम सहम कर रिश्तों को निभा कर बहुत देख लिया ,बच्चों की तरह रूठने मानाने का मन है आज..
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लहरो में खो जाऊं फिर , खुद को ही मैं ढूंढूं ,ऐसा एक तूफ़ान उठाने का मन है आज ..
हवाओं में उड़ने का ,प्यारी सी इक धुन पर थिरकने का ,गीत कोई गाने का मन है ..
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