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मेरा पता
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मेरा पता है छुपा
सूर्यमुखी सवेरों में
चंद्रमुखी संध्याओं में
मौन स्वरों के सन्नाटों में
अजनबी अंधेरों में /
मेरा पता है छुपा
समाये हैं जिनमें ग़म हजारों
उन भीगी नम हवाओं में
आंचल में अपने समेटे
दर्द के अफसानों की गवाह हैंजो
उन उदास फिजाओं में
मेरा पता मिलेगा वहाँ ,
पिघला न सका जिन्हे
कोई बेजुबान बेचारा ,
अलगाव की उन मौन शिलाओं में।
मिलूंगा मैं /
दर्द की जुबान बन गूँजतें सात सुरों के
किसी गीत के आरोह अवरोह में /
छिपा है मेरा पता ,
उस खिड़की में भी
खुली है जो न जाने कब से
सूर्य रश्मियों के इंतजार में
या फिर ,
उस बरसात में जो ,
जो बरस गई बनकर बादल
किसी की याद में
मेरा पता …….
छुपा है खुली आँखों के स्वप्न में
मौन सुरों के अनसुने आलाप में
आहों के सागर की , बर्फीली तपिश में
बुझ न सकी जो सेहरा की उस प्यास में
आहट पर किसी की ठहरी हुई हर आस में
मेरा पता ………..
वो आसमां
जिसे जाने किसका है इंतजार
वो कलियां ,
महकता हो जिनमें किसी का प्यार
वो फूल लायेंगे संग अपने जो
कभी तो मौसमे -बहार
संघर्षों से थक चुका
उदास, अकेला ,दर्द भरा कोई दयार
मेरा पता है
किसी के दृग गगन में रचा एक स्व्प्न सुहाना /
सात सुरों का इक गीत सुरीला
किसी की पायल की रुनझुन
होंठो पर किसी के थिरकती सरगम की
वो मीठी सी धुन
मेरा पता
मिलेगा किसी भोले से
शिशु की सुहानी स्मित में /
मन को जो छु ले
कविता की उस एक पंक्ति में /
तुम्हारे आसपास बहने वाली
हवाओं में हूँ मैं /
धक् धक् करते तुम्हारे इस दिल की
हर धड़कन में हूँ मैं /
उदास है न जाने क्यों /
धानी सी उस चूनर में भी तो हूँ मैं /
इन सभी में मेरा पता है
इन सभी को मेरा पता ,पता है
सदियों से मेरा इन से
तुम से नाता है
फिर क्यों खोज रहे हो मुझको
यहाँ वहां
सदियों से तुम हो जहाँ
मैं भी हूँ वहां
लिए फिरते मेरा पता
खुद में ही तुम
तुम ही तो हो मेरा पता
हाँ ,तुममें ही तो है छुपा मेरा पता ………
( यह कविता कुछ दिन पहले हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित काव्य संग्रह ‘मेरी ज़मीं मेरा आसमां ‘में छपी है )
सरोज सिंह
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