कुछ कही कुछ अनकही
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दिल में नफरत ज़ुबां पे तारीफ
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दिल में नफरत जुबां पे तारीफ
या इलाही
क्यों कुछ लोग हर रोज सच का कत्ल करते हैं
आने वाले वक्तों में
खुद से मिला सकूं नजरें ,होकर बेख़ौफ़
तमन्ना यही दिल में ले कर
नये इक सफर का आगाज करते हैं
कौन अच्छा कौन है बुरा
क्या गलत और क्या है सही
चलो छोड़ो
आज यह बहस बस यहीं दरगुजर करते हैं
मंजिल थी सामने मगर
पहचान ही न सके जो
हैं कुछ लोग ऐसे भी इस शहर में
आज तक हर किसी से मंजिल का पता पूछते फिरते हैं
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