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अनजानी अजनबी हावों के हाथों में पतवार मत देना

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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अपने ग़म अपनी खुशियों का हिसाब हर किसी को मत देना /
अनजानी अजनबी हवाओं के हाथों में पतवार मत देना /
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है उजाला उतना ही काफी चिरागों से जो मिला /
नहीं है कोई आफ़ताब से अब हमको गिला /
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जिन्दगी की राहों में अक्सर ख़ारों ने ही साथ दिया मेरा /
मिले तो थे फूल भी पर जाने क्यों उनसे रिश्ता निभा नहीं मेरा /
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आये दिन कुछ सवाल बस यूँ ही तंग करते है /
अजब हैं हम इन्सान भी हरदम खुद से ही जंग करते हैं /
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हालत पे अपनी नसीबों के खेल को कभी मत इल्जाम देना /
पूछे कोई जो यह सवाल कभी, तो थोड़ा सा बस मुस्कुरा देना /
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