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कहीं कोई बादल न पुरवैय्या है /कोई गिलहरी न गौरय्या है

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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( एक )
सूखे प्यासे सेहरा में /
रेत के सागर से घिरा /
एक बिन पत्तों का सूखी टहनियों वाला एक बूढ़ा पेड़ /
यूँ खड़ा है /
जैसे कोई थका हारा पथिक /
या /
कोई दर्शनिक किसी गहरी सोच में खड़ा /
सुलझा रहा हो गुत्थी कोई अनसुलझी इस ब्रहमांड की /
सोच रहा है शायद /
क्यों ?
दुनिया के रचियता ने /
कहीं बर्फ का ऊँचा पहाड़ /
सागर गहरा कहीं /
तो कहीं हरा भरा जंगल/
और यहाँ तो बस सूखा सूना रेत का इक समन्दर बना दिया /
खड़ा है जहाँ हरियाली को तरसता इक ठूंठ /

जीवित है कैसे इस सूने बियाबां में /
समझा रहा है यह शायद रहस्य कोई /
देखो ,सोचो,………..
यहाँ नहीं कोई पेड़ या पत्ता /
नदिया भी नहीं आसपास /
घास का तिनका नहीं /
नहीं कोई कोंपल नई/
कोई गिलहरी न गौरय्या है /
कहीं कोई बादल है न पुरवैया है/
अबूझ है जिन्दगी का यह रंग /
नही हारना कभी मुश्किलों से /
सिखा रहा यही सबक /
सेहरा में अकेला खड़ा एक पेड़ /
सेहरा में अकेला खड़ा एक पेड़ ……….

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