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हर अहसास को रूह से अपनी आज आजाद कर दिया ……..

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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हमने तो खुद को प्रोन सा हल्का कर लिया

संजो रखे थे यादों के कुछ मोती मन के इक कोने में /
इक दिन बस यूँ ही कलम उठाई और कोरे कागज के हवाले कर दिया /

कड़वा या मीठा जो भी मिला था इस जमाने से /
अमानत थी जिसकी वसीयत बना के उसके नाम कर दिया /

जिंदगी ने दिए थे जो लम्हे ख़ुशी के थे या ग़म के /
भुलाकर सब कुछ ,बना लफ्ज़ों की पहेली , विदा सब को कर दिया /

अब लफ़्ज पहने ज़ामा किसी भी रूप रंग का यह उनका फैसला /
उतार इस बोझ को मन से , हमने तो खुद को परों सा हल्का कर लिया /

जो चाहे वो समझे मतलब इन लफ्जों का उनकी मर्जी /
हमने तो हर अहसास को रूह की दीवारों से आजाद कर दिया /

अकेले हम ही क्यों झेलें यह दर्दों -गम, यह तनहाइयाँ

इसी लिए तो हमराज हमने जमाने भर को बना लिया /

मिला जो ,कम था या ज्यादा, नफा हुआ या नुकसान /
कुछ शिकायतें , उलाहने ,कुछ जख्म सब भुला कर /
दोस्त थे या थे दुश्मन ,हमने तो शुक्रिया सब का अदा कर दिया……………

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