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फूलों में तु कलियों में तु……….

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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फूलों में तु कलियों में भी तु ……
मुझे तो नजर आता है इस शहर की गलियों में तु ……
दोस्तों में दिखता है तेरा ही चेहरा ……..
दुश्मन भी अब तो दुश्मन नहीं लगता मुझे ……….
पाकर तुझे खुश हूँ मैं इतना कि…….
साथ मेरे झूम रहा है जमाना सारा …
खुशनुमा हैं मेरे सारे अपने …..
तो ……..
थोड़े से घबराए हुए हैं …..
थोड़े से गमजदा भी है ……
दुश्मन मेरे ………….

..

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