कुछ कही कुछ अनकही
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धुल का कण /
उड़ता है पाकर साथ हवा का /
ड़ूब जाता है किसी नदी या तालाब में कभी /
पाकर कभी साथ पानी की बूंदों का /
न पर उसके पास न पैर हैं चलने के लिए /
तब भी ……
तय करता है /
सफर ….
कुछ ऐसे ऐसे /
जो उसने खुद चुने तो /
पर जानबूझकर नहीं /
सोच समझ कर नहीं /
बस यूँ ही साथी बना लिया कभी हवा को /
तो कभी बूंदों को /
धुल का यह कण /
ऐसे ही भटकता है जीवनभर /
कभी चाहे /
तो कभी अनचाहे /
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