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जाने कैसी खलिश है यह मन में /

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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खलिश है यह कैसी ?
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जाने कैसी खलिश है मन में ?
वाकिफ़ हूँ मैं उस उगते सूरज जैसे चेहरे से /
उन खुबसूरत आँखों से भी /
और उन सुरखाब जैसे परों से भी /
उस बेहिसाब सब्र और हिम्मत से भी /
फिर भी ………
जाने कैसी खलिश है मन में ?
जानता हूँ मैं यह कि हिजाब में छुपा /
तेरा ही चेहरा हूँ मैं /
पर मैं हूँ सच्चाई का वो आसमां/
ढका हूँ बादलों से तो /
तो बस डर से जमाने के /
और तभी तो शायद /
खलिश है मन में यह अनजानी सी

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