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खिड़की से दिखता वो आसमान …..

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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खिड़की से दिखता वो आसमान
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कमरे की खिड़की के बाहर का आसमान /
रंग बदलता पल पल /
कभी नीली चादर से ढका हुआ/
अभी बादलों के पीछे छुपा हुआ /
ऐसे ही न जाने कितने रंगों से भरी है यह जिन्दगी भी तो /
कभी खुले ,खिले आसमान सी /
खुशनुमा ………
कभी गहरे बादलों से ढकी , ग़म में डूबी /
उदास ……….
हर पल रंग बदलती /

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