Menu
blogid : 13246 postid : 567837

VIMUKTOAHM …….. मुक्ति और समर्पण…….

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
  • 193 Posts
  • 159 Comments

मुक्ति
========

क्यों हमें हमारे पूर्वाग्रह अपनी मुट्ठियों को खोलने से रोकते हैं ??????
क्या खो जायेगा जो मुट्ठी में बंद कर रखा है ?
मुठ्ठी खोलते ही तो सारा आकाश हमारा हो जाता है .
बिना कुछ खोये इतना कुछ पा लेना ?
क्या था मुट्ठी में बंद जो खो गया ?
कुछ भी नहीं .
क्या पाया ?
सब कुछ ……..बहुत कुछ ………
प्यार ,,,,,,,,
विश्वाश ,,,,,,,,,,,
श्रधा ,,,,,
सहजता ,,,,,,,
स्वीकार्यता ,,,,,,
दिल और दिमाग को किसी भी विचार के बोझ से मुक्त कर अपने अंदर झांकना ही मुक्ति का पहला कदम है ……

समर्पण

================

एक बूँद ..
समन्दर में मिल कर …….
समंदर बन जाती है …….
जब बूँद थी …….
तब कुछ नहीं थी …….
कोई पहचान थी न कोई अस्तित्व था …….
मिली जब समंदर से जाकर ………
खुद ही समंदर हो गई …….
पाई उसने गहराई असीम …….
खोकर अपना नन्हा सा रूप ……
सम्पूर्ण समर्पण किया बूँद ने ………
और पाया ………
अमरत्व ……………….

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply