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आजकल रूठे हुए हैं मुझसे ………………..

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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पिछले कई दिनों से मेरे आसपास के हालत बहुत अजीब से हो गये हैं . कुछ पुराने साथी न जाने क्यों ऑंखें चुरा रहे हैं . वो जो हर दुःख में मेरा कन्धा बने थे ,वो जो हर ख़ुशी में मेरे साथ खिलखिलाए थे आज मुहं फेरे बैठे हैं .बहुत मान मनुहार की पर नहीं ,सारी कोशिश बेकार हो गई .
वैसे आपको बता दूं की ये रूठे मेरे साथी और कोई नहीं बल्कि मेरी लेखनी से कागज पर उतरने वाले अल्फाज हैं .
जी हाँ पिछले कई दिनों से जब भी कुछ लिखने का प्रयास किया शैतान बच्चों की मानिंद मेरे साथ आंख मिचौली खेलने लगे और किसी कविता ,कहानी .लेख के बंधन में बंधने के तैयार ही नहीं होते .कुछ दिन पहले तक ऐसा नहीं था .मन में आये भावों को तपाक से किसी कविता या कहानी का रूप दे देना बहुत आसान था .पर अब नहीं ……….
बागी हुए अपने इन लफ्जों में से कुछ नर्म दल वालों को रोक इस हड़ताल का कारण पूछा तो कई कड़वे मीठे उलाहने मिले, शिकायतें भी मिली जो एकदम जायज थी .इन प्यारे दोस्तों का कहना था कि कभी कभी तो आप से हर दिन मुलाकात होती है हम ख़ुशी ख़ुशी आपके मन चाहे रंगों में ढलते रहते हैं .कितना खुशनुमा सा माहौल रहता हैं . किताबें ,कलम कॉपी ,ढेरों नई पुरानी डायरी सब का साथ कितना सुहाना लगता हैं .हम सब मिल कर कितना कुछ नया गढ़ लेते हैं .और फिर अचानक सृजन के इस खुबसूरत अहसास से हम दिनों, हफ्तों, महीनों के लिए महरूम हो जाते है .
इस विरह की पीड़ा को आप तक पहुचने के लिए ही हमने आपसे यह दूरी बनाई ताकि आप फिर हमसे यह सृजन की ख़ुशी न छीने.
उलाहना तो एकदम जायज था .पर मैं उन्हें कैसे समझाऊँ की हम मां या पत्नी नाम का जीव कितनी उलझनों से घिरा है . हर दिन एक नई चुनौती एक नए संघर्ष से गुजरना हमारी नियति है .फिर चाहे वो किसी भी स्तर पर हो .यह चुनौती ,यह संघर्ष घर की चारदीवारी से ले कर समाज .राष्ट्र और कभी कभी तो अंतर्राष्ट्रीय भी हो सकती हैं .मानसिक , शारीरिक भावनात्मक हो सकती हैं .रिश्तों की जिम्मेदारी ,दोस्तों की नाराजगी या फिर ढेरों शादी ब्याह के न्योते ,कुछ किटी पार्टियाँ , गाहे बगाहे थोड़ी या ज्यादा शॉपिंग और बहुत दिनों बाद मिलने वाले अड़ोसी पड़ोसियों से कुछ गॉसिप और सबसे जरूरी काम तो अभी बताना बाक़ी है .जी हाँ यह मरा टेलीविज़न .इतना कुछ तो देखना सुनना होता है ……..क्रिकेट .राजनीति., ढेरों सिरिअल्स . हर हफ्ते रिलीज़ होने वाली नई नई मूवीज , बस रिमोट चैनल्स का सफर तय करते करते बेदम हो जाता है बेचारा . और हर सुबह की सैर के बाद तीनचार हिंदी ,अंग्रेजी के अख़बारों के हर पन्ने को चाय के दो तीन प्यालों के साथ पढ़ते सुनते समय हो जाता है घर के अनगिनत कामों का .और इस तरह यह सुबह शाम का चक्कर हम गृहिणियों को चक्करघिन्नी बना कर छोड़ देता है और मन में उमड़ती घुमड़ती कविता कहानियां के नसीब में लिखा इन्तजार द्रौपदी के चीर सा बढ़ता ही जाता है .

और अभी मौसम के अत्याचारों का ब्यौरा तो बाकी ही रह गया . सर्दी ,गर्मी बरसात को झेलने के लिए बाकायदा तैयारी करनी पडती है फिर चाहे वो अलमारियों ,बक्सों में कपड़े रखने की बात हो या निकाल कर धूप दिखाने की इन सब कामों में न जाने कितना समय निकल जाता है .और मौसम के अनुसार घर के सदस्यों की फर्मयाशें भी तो पूरी करनी होती हैं हर घर की सुघड़ गृहणी को .गर्मियों में शरबत ,लस्सी .जलजीरा, पन्ना शिकंजी की बोतलें भर कर रखनी पड़ती हैं ,घरवालों के लिए भी और आये गये मेहमानों के लिए भी .
बरसात की रिमझिम गर्मी की राहत के साथ बहुत कुछ लाती है, गाहे बगाहे बरखा की बूदों का पूरा मजा उठाने के लिए गरम गरम पकौड़ें..गुलगुलें और न जाने क्या क्या तो बनाते ,खिलाते घंटों बीत जाते हैं .और फिर इस सीलन भरे मौसम में कीड़ें मकौडों से रसोई और बाकी घर की चीजों को भी संभालना अपने आप में बहुत बड़ा काम होता है .

फिर आई सर्दी तो गाजर का हलवा ,पिन्नियां सरसों का साग और मक्की की रोटियां बनाते और सबको गर्म गर्म खिलाते खिलाते सर्दी के नन्हे नन्हे दिन कब उड़ जाते है पता ही नहीं चलता . ,उफ्फ मै मेरा अपना समय कहाँ से लाऊँ ? कितनी बातें मन में घूम रहीं हैं जो शब्दों का रूप लेने को बेताब हैं .
चलो इन सब फारिग हो कर कभी कुछ खाली घड़ियाँ निकाल भी ली तो मेहमानों के आने की खबर मिल जाती हैं . लिखने लिखाने का सारा मूड हवा हो जाता है ,मेहमान चाहे दूर के हों या पास के ,मायके के हों या ससुराल के खातिरदारी तो करनी ही है , ऐसे में फुर्सत के पल ईद का चाँद बन जाते है .आपकी अपनी सोने बैठने की जगह पर किसी और का कब्ज़ा हो जाता है और आराम का समय मेहमानों को घुमाने ,फिराने में और उनके साथ गपशप के कभी न खतम होने वाले sessions की बली चढ़ जाता है.
यह सब निभ जाता है आखिर इतने सदियों से निभा ही रहे थे .पर अब इस नये जमाने ने हमारे हाथ ने कुछ ऐसे जादुई चिराग थमा डाले है जो वैसे तो हमारे लिए वरदान से कम नहीं .मोबाइल ,कंप्यूटर .ipad ,iphone ने दुनिया को इतना छोटा बना दिया की दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाले रिश्तेदार हों या बच्चे या फिर बच्चों के बच्चें सब के साथ बात करना ,ईमेल करना ,skype पर घंटों उनके साथ आमने सामने बैठ कर न केवल बातें करना बल्कि कुछ न कुछ देखना दिखाना चलता रहता है .अपने नन्हे नाती पोते को हर दिन नए नए क्रिया कलाप करते देखना बहुत अच्छा लगता है और हजारों मीलों की दूरियां का अहसास बेमानी हो कर रह जाता है .कुछ खटकता है तो बस यह मरे समय की कमी खटकती है .
जिंदगी का यह पडाव वैसे तो बहुत सुखद है .पर………….
पर वो इन्सान तो अभी तक पैदा हुआ ही नहीं जिसके सारे अरमान सारे सपने पूरे हो गये हों सो इसी तरह हमारे भी कुछ सपने अधूरे रह गये हैं .जिनका पूरा होना अभी बाकी है . सालों पहले से कुछ फुर्सत के पलों का इंतजार है .बहुत पहले अपने लिए एक rocking chair बनवाई थी इस उम्मीद में की जब बच्चे बड़े हो जायेंगे और अपने जीवन का सफर खुद तय करने लायक हो जायेंगे तब इस पर बैठ कर चाय पीते हुए अपनी मन पसंद किताबें पढने का समय मिलेगा .अभी तक तो ऐसा समय आया नहीं आगे शायद कभी आ जाए इसी उम्मीद और आशा के साथ अपने जीवन का सफर तय हो रहा है .कभी तो समय आएगा जब मेरे यह साथी मुझसे यूँ न रुठेंगे…………………….

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