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हाइकू

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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मन वैरागी
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जीवन क्या
बस जीते जाना यूँ
बोझ हो जैसे

फूल, सपने
तितली चाँद तारे
कितने सारे

सब खो गये
राहों में बस यूँ ही
चलते हुए

पीछे मुड़ना
अब क्या तकना
धुंध है बस

भीड़ है बस
हर तरफ शोर
हूँ मैं अकेला

अब कहाँ  हूँ ?
कौन सा हैं दयार ?
सब बेमानी

निकला आज
अपनी ही खोज में
राहें ये नई

खोया खुद को
तब ही पाया मैंने
मन वैरागी

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