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खोज ही लेंगे राहें दिलों की ………………

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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खोज ही रहें दिलों की
————————–

(एक )
खोज  ही लेंगे राहें दिलों की /
अल्फाज वो निकलेंगें जो गहराइयों से दिल की /
छुपा हैं दिल में जब जज्बातों का इक समंदर /
अहसासों से खाली यह सूनी सूनी सी निगाहें लिए
फिरते हो फिर क्यों दरबदर
(दो)
जाना है कहाँ ?मंजिल है कौन सी ?
क्यों हो परेशान इन सवालों से ?
इक सफर कभी अपने ही अंदर तय करके देखो तो सही ………
मिल जाएँगी राहें उजली अपने ही मन के उजालों में ……………
( तीन )
दुखों से करना किनारा क्यूँ ?
ग़मों से क्यों आंखे चुराना क्यूँ ?
ग़मों के दर्द में ही पिन्हा है दवा भी …
खिलते है ज्यों फूल काँटों के आँचल में ही …….
छुपे होते है हीरे भी कितने पत्थरों के दामन में भी …………
( चार )
वो दिन जब हवा मंद मंद बह रही हो /
और नाव पाल खुलने का बेसब्री से कर रहीं हो इंतजार /
खुबसूरत से लग रहें हो जब सारे नजारें /
दूर क्षितिज पर /
जमीं आसमां मिलने को हो बेताब बाहें पसारे /
हर शै दिख रही हो हसीन /
ऐसा है आज का यह दिन /
पर /
क्यों नहीं होता हर दिन ऐसा ही ?
(पांच )
ठीक दिल के बीचों बीच/
होती है वो जगह /
जहां से जिन्दगी होती है शुरू /
और ..
यही वो जगह है सबसे ख़ूबसूरत इस जहाँ में …..

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