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वो पल जिये जो बेगाने हो कर खुद से …… …….

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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वो पल जिए जो बेगाने हो कर खुद से
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कभी कभी कुछ पलों के लिए मेरा मैं मुझे त्याग कर कोई और हो जाता है /
तब मैं अपने लिए ही बेगाना हो जाता हूँ /
और दूर से खुद को देखता हूँ /
जीते हुए उन पलों को जिन में मेरा दम घुट रहा था /
सब कुछ झूठा और दिखावटी था /
हर चेहरे पर एक मुखौटा था /
सच का पता कहीं खो गया था /
प्यार का रूप बदल कर कुछ और हो गया था /
मेरे इर्द गिर्द बेड़ियाँ थी रिवाजों की/
वो रिवाज जो न जाने किसने और कब बनाये थे /
बहुत निभा लिए यह सच्चे झूठे रिवाज /
बस अब और नहीं /
बस अब और नहीं /
इसी बेमतलब की दुनियादारी से थककर ,ऊबकर मेरा मैं अलग हो गया मुझसे /

उन पलों से ,उन लम्हों से /
जिनमें जीकर कुछ पाना नहीं /
क्यों जिए ऐसे लम्हे /
जो दिल दुखाते हैं , जख्म देते है /
कभी न खत्म होने वाली थकन देते हैं /
मेरा मैं मुझसे करता है ऐसे अनगिनत सवाल /
मैं क्या जवाब दूँ उसे .
मैं तो जिया हूँ अब तक /
औरों के लिए /
रस्मों के लिए /
रिवाजों के लिए /
अपनों के लिए
कभी कभी /
बेगानों के लिए
नहीं जिया तो बस अपने लिए /
मेरा कोई पल मेरा अपना न था /
आएगा इक दिन इक पल मेरा भी /
इसी इंतजार में जिया मैंने जीवन /
अब और कितना जियोगे खुद से बेगाने हो कर ??
पूछ रहा मेरा मैं मुझसे आज /
जवाब क्या दूँ मैं बस यही सोच रहा हूँ /
बस यही सोच रहा हूँ ……

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