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चलो राह के पत्थरोँ को मील का पत्थर बना देँ।।।।।।।।।।।।

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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राह के पत्थरों को मील का पत्थर बना दें
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वक्त जैसा सितमगर न देखा कोई
कौन सी अाखँ है भला जो इसके सितम से रोई नहीं /

जख्म लिखे है जो नसीब मेँ तो  सहने ही  हैं
नमी है अाखोँ  की किस्मत मेँ तो अासूँ बहने ही हैं /

क्या रुलायेगा यह जमाना हमें
वक्त ने क्या कम रुलाया है हमेँ?

फिर भी हमने दी  इस बेदर्द जमाने को सिर्फ मुस्कुराहटेँ
छुपा कर अश्क अपने  कभी किसी बहाने कभी किसी बहाने से/

अाया बुरा वक्त  हर बार इक नई शक्ल में
दे कर ही गया मगर  हर बार कुछ अौर अक्ल हमेँ/

जुल्मोँ ने तराशा है अरमानोँ को हमारे अौर भी कुछ ज्यादा
अब खवाहिशेँ भी  बढ़ गई हैँ कुछ अौर ज्यादा/

अकेले हमीँ नहीँ हैँ वक्त के मारे हुये
हर कदम पे मिला हमेँ कोइ न कोइ अश्क बहाते हुए /

चलो इन जुल्म के लम्होँ को यादगार बना लेँ
अपनी कलम को ही कुछ और धारदार बना लेँ/

दिल के कोनोँ मेँ छुपी ख्वाहिशोँ के लिये कोइ नया पत्थर तलाशेँ
चलो पुरानी राह के पत्थरोँ को  मील का पत्थर बना देँ/

गुजरेगेँ कई राही हमारे बाद भी इन्ही राहोँ से
नगमे हमारे गूजेगेँ  किसी की मुस्कान मेँ  तो किसी की अाहोँ मेँ/

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