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जिंदगी है यह ,कोई कारोबार तो नहीं …
ख्वाबोँ की दुनिया का सफर/
लगे कितना सुहाना ,कितना हसीँ/
न रोकेँ अासमाँ की हदेँ।
न मिलेँ राहोँ मेँ तँग जमीँ/
मिला जो भी सफर मेँ, बाँट रहा था बस मुस्कुराहटें /
मिले कुछ अधूरे अफसाने भी राह मेँ/
अौर मेरा वो शहर भी लगा बहुत अपना सा /
हैरान सा करने वाले थे वहाँ कुछ नजारेँ/
जमीँ अासमाँ की हर हद से पार मिला जो एक गाँव/
मन भाया इतना कि भूले गये वापसी की राहेँ/
अौर सोचा क्यूँ न रह जायेँ यहीँ/
यहाँ सुबह शाम की वो उलझनेँ नहीँ/
वो अनचाहे , अनबूझे सिलसिले भी नहीँ/
जो लपेट लेते है छोटी बड़ी हर खुशी/
दुनियादारी के मायाजाल मेँ /
सच बोलना जहाँ अब गुनाह है/
बेमतलब सा हो गया सब कुछ /
मुस्कुराहटेँ भी तो कितनी कम हो गयी /
खुशियाँ बदल कर नाम अपना गम हो गयी/
रिश्तोँ के तो बदल गये बस मायने ही/
हर जुबाँ चुप है, घटता रहता कितना कुछ सामने ही /
गोया किसी का किसी से कोइ सरोकार नहीँ/
दिल करता है चीख चीख कर पूछेँ /
जिन्दगी है ये कोइ कारोबार तो नहीँ?
पर पूछेँ किससे ?
इस सवाल का जवाब देने को तो /
यहाँ अाज के दिन कोइ भी तैयार नहीं /
रही न अब यह सब सहने की ताब बाकी /
रही न अब पानी मेँ भी अाब बाकी/
इसीलिये/
यह ख्वाबोँ की दुनिया का सफर लगे इतना अज़ीज़ /
जैसे मिल गया दोस्त वो था कभी जो बहुत करीब /
नहीँ जाना लौट कर अब अपनी उस दुनिया में /
बहुत खुश हुँ मैँ अपने ख्वाबोँ की इस दुनिया मेँ /
इल्तजा है इतनी सी बस टूटे न यह ख्वाब अब कभी/
होती रहेँ बातेँ बस फूलोँ की,कलियोँ की/
चर्चा हो जहाँ बस दोस्ती की ,दोस्तोँ की गलियोँ की/
गुजर जायेँ उम्र के बाकी साल बस कुछ एेसे /
गुजरा था बिना किसी फिक्र के वो बचपन जैसे /
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