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चेहरों पर चेहरे …कितने….कैसे कैसे

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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चेहरों पर चेहरे ,,,,कितने …..कैसे कैसे …….

छिपा हुआ जाने कितने नकली चेहरों के पीछे असली इक चेहरा/
हुआ  है यूँ भी कभी /

असली चेहरे ने
परदे के पीछे से /
धिक्कारा कभी /
तो दी कभी चुनौती भी /
टकराहट भी हुई कई फैसलों पर /
कभी तरस भी खाया /
और फिर छोड़ दिया हमें हमारे हाल पर /
लेकिन गाहे बगाहे ……..
हँसतें भी देखा है हमने हमारे मुखौटों को हम पर ही/

घिर कर रह जातें तब हम अपने ही कुछ सवालों में /

और झकझोर कर चले जाते कुछ झंझावत अजीब से ख्यालों में /
जंग एक छिड़ जाती तब /
और ………..
इस जंग में /
जीत कर भी हार जाता असली चेहरा
क्योंकि ……………………………………..
तभी ……………………………….
बीत जाता वो लम्हा /
फिर ……………………
हो जाता सब पहले जैसा /
नकली बनावटी /
झूठा सा /
नकली मुखौटे अपनी नकली मुस्कान लिए /
जीते रहते नकली सा यह जीवन /
अनजानी सी राह के भटके हुए से राही की मानिंद /
फिर …………………..
कहीं किसी मोड़ पर इक दिन /
ऊबकर थक कर /
आता ही है वो इक पल /

होती जब एक बेबाक मुलाकात खुद से /
सुकून से लबालब होता वो पल …………………….
जादुई सा वो पल देता अद्भुत अनुभूति /
बनावटी जीवन से देता मुक्ति /
अनोखा इक तोहफा देता मिला कर हमें ही हम से /
……….. और फिर हो जाता विदा हौले से ………
किये बिना कोई आहट/
……..और हम …………
हम तो …………
खुद से मिलकर /
कुछ शर्मिंदा से /

धीरे से निकल बाहर /
मुखौटों से /
लम्बी सी लेकर एक सांस /
हो कर हल्के पंछियों से /
उड़ चलते /
नये पड़ावों की ओर /
फूलों सी मुस्कान लिए चेहरे पर /
……….और ……….
लिए क़दमों में घुंघरुओं की झंकार /
मीठी सी इक झंकार ……………………

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