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सूरज की पहली किरण सा तू ….

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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हवंन की खुशबू जैसा तू

सूरज की पहली किरण जैसा तू /
गुलाब की नाजुक पंखुड़ी सा तू /
हवन की पवित्र खुशबु सा तू /
गीली मिटटी की सोंधी महक सा तू /
बसंत की ठंडी बयार सा तू /
मासूम सी खिलखिलाती हंसी सा तू /
अभी अभी चोट खा कर आये नन्हे से बच्चे सा तू/
प्यार और दया की कोई मूरत सा तू /
किसी निर्बल निशक्त की लाठी सा तू /
जिंदगी की कठोरता से कभी एकदम से घबराया हुआ सा तू /
जब मेरे आँचल में आया /
आकर हमेशा मुस्कुराया तू/
और फिर गोदी में सिमट गया तू/
मेरे बेटे तू जहाँ भी रहे /
बस तेरी यह निश्छल हंसी / तेरी आँखों में बच्चों वो जैसी शरारत /
और दुनिया की ऊँची नीची राहों पर चलने का तेरा होंसला बना रहे /
जब भी दुनिया की बेरुखी से घबरा जाये तो मेरे पास आ जाना /
मैं तेरे थके कदमो को सहला कर /तेरी सारी थकान को अपने आँचल में छुपा कर रख लूंगी /
और
फिर से नए संघर्ष के लिए नई हिम्मत देकर मैं तुझे /
नई मंजिलों की राह पर ख़ुशी ख़ुशी भेज दूंगीं /

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