कुछ कही कुछ अनकही
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यादें भी तो फूलों सी होती हैं
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बीते हुए दिन किसी बगीचे की मानिंद होते हैं /
थोडा प्यार और उन हाथों की वो नर्म सी छूअन/
फूलों को महका देती है /
यादें भी तो फूलों सी होती हैं /
झरोंखों से झांक कर देखे धीरे से तो /
कोई हवा का ताजा सा झोंका /
पानी की कुछ ठंडी बौछारें /
और /
कभी बगीचे की माटी की तरह /
यादों के पन्नों को भी उलटे पलते तो /
सोई हुई कितनी यादें /अचानक करवट लेती हैं /
माली के हाथों के जादू से जैसे नये फूल /कलियाँ
खिल खिल जातें है /वैसे ही /
पुरानी डायरियों के पन्नो को /उलटना पलटना भी यादों की खुराक है /
उन्ही पन्नों में से पुरानी यादों की खुशबुएँ /
चारों ओर बिखर कर /
मन को सालों पीछे ले जाती हैं /
और यादों के इस बगीचे में खोये हम /
समय की हदों के उस पार निकल जाते हैं /
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