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हवाअोँ का बोया था बीज जिन्होने,,,,,,,,,,,,,,,

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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हवाओं का बोया था बीज जिन्होंने
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हवाअोँ का बोया था बीज जिन्होने।
उलझी है जिन्दगी अाज उन्ही की तुफानोँ मेँ ।

चलते चलते राहोँ मेँ छोड जाते है।
कुछ निशाँ छाले जो पावोँ के।
छिपे होते है न जाने अफसाने कितने।
दर्द के उन्ही निशानोँ मेँ।
उम्र अपनी जी चुके हैँ जो फर्ज़ अदा हुअा उनका तो।
टिकी हैँ उम्मीद की निगाहेँ अब तो नौजवानो पे।
सीख लिया जो सीखना था पुराने किस्से कहानियोँ से ।
रचना है अब तो नया कुछ अपने ही अफसानोँ से।

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