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ओ नन्हे से पक्षी………….

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही
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ओ नन्हे से पंछी

ओ नन्हे से ,छोटे से पक्षी .
चहक चहक कर ,
गुनगुना रहा है .
कितने सुरीले गीत तू/
उस उजली सुबह के लिए .
छुपी है अबतक अंधेरों में ,
कितना अद्भुत है तेरा विश्वाश ?
उसके स्वागत में गा रह है गीत तू ,
जो है अभी दूर ,बहुत दूर कहीं .
सचमुच अद्भुत है तेरा यह विश्वाश /
और देख कितने भ्रमित है इन्सान .
ओ नन्हे पक्षी
कि
गुम रहते हैं निराशा के अंधेरों में .
रहते हुए भी सूरज की रौशनी के तले .
असीम शक्ति के मालिक हम .
फिर भी कितने भीरु ,कितने कमजोर हम /
चहक चहक कर करता तू अभिवादन ,
नये दिन नई सुबह का इतने मीठे गीतों से .
ओ नन्हे पक्षी तुझे शत शत प्रणाम .
तुझे शत शत प्रणाम ……………

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